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प्रस्तुतकर्ता: [रिजवान]
New Delhi 10 September 2025
1. “झूठी खुशखबरी” vs. वास्तविक महंगाई
सरकारी और मीडिया सुर्खियाँ
“महंगाई घटकर छह साल के निचले स्तर—2.1%”—लेकिन क्या यह सच में राहत है?
- भारत में खुदरा महंगाई (CPI) जून 2025 में 2.10% पर पहुंच गई—सबसे कम दर्जा, जिससे RBI को ब्याज दर कम करने का रास्ता मिला ।
- हालांकि, यह “राहत” सिर्फ उस अत्यधिक महंगाई के स्तर को सामान्य करने जैसा है—not कम कीमतों का सच। ऐसे नेताओं-संचार माध्यमों ने इसे “खुशखबरी” बताकर जनता की पीड़ा को छलावा बना दिया।
2. बेरोज़गारी—सरकारी आंकड़े और जमीन की हकीकत
सरकारी आँकड़े दिखाते हैं सुधार… लेकिन युवाओं की हालत है चिंताजनक
- सरकारी आंकड़ों (PLFS) के अनुसार, जून 2025 में बेरोज़गारी दर 5.6%, जो मई के 5.1% से बढ़ी है ।
- वहीं, CMIE के अनुसार जुलाई में बेरोज़गारी दर 6.8% थी, और 20–24 वर्ष आयु वर्ग में यह 35.9% तक थी ।
- PLFS अप्रैल–जून 2025 के अनुसार, कुछ राज्यों (जैसे हिमाचल, पंजाब, हरियाणा) में युवा बेरोज़गारी औसत से कहीं ऊपर रही—कहें तो समुदाय के भीतर ही क्रूर सच्चाई छिपी है ।
- Outlook Business के अनुसार, भारत में बेरोज़गारों का 83% हिस्सा युवा वर्ग का है—शहरों में 18.8%, ग्रामीण इलाकों में 13.8% बेरोज़गारी ।
3. MSME—नोटबंदी और GST का असर
सरकार के वादों के बावजूद, MSMEs में संघर्ष जारी
- Congress ने आरोप लगाया कि नोटबंदी, बिना तैयारी में लागू GST, और COVID लॉकडाउन ने MSME सेक्टर को बुरी तरह प्रभावित किया — जिससे कई नौकरियाँ खत्म हो गईं ।
- रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों ने इस बात की पुष्टि की है कि MSMEs—जो रोज़गार का प्रमुख स्रोत हैं—वह इस राजनीतिक आर्थिक ब्लंडर की कीमत चुका रहे हैं ।
- हाल ही में प्रस्तावित GST 2.0 सुधार MSMEs की मदद के लिए हैं—लेकिन असली सुधार अभी मांग में हैं ।
4. संक्षिप्त तुलना तालिका
विषय | मीडिया/सरकारी दावा | सच्चाई / जमीनी स्थिति | श्रेय (लिंक) |
---|---|---|---|
महंगाई (Inflation) | महंगाई 2.1% पर, राहत की खबर | असल में यह गिरावट राजनीतिक “राहत”—महँगाई के शिखर को नए सामान्य में बदलना | |
बेरोज़गारी | बेरोज़गारी बढ़ी पर मामूली | युवा बेरोज़गारी बहुत ज्यादा—20–24 वर्ष में 35.9%, कुछ राज्यों में और अधिक | |
MSMEs | सुधार की योजना (GST 2.0) | MSMEs पहले से ही त्रस्त—डेमनिटाइजेशन, GST, लॉकडाउन ने विदारक प्रभाव डाला |
5. निष्कर्ष और सोशल पैकेज
- “महंगाई में गिरावट” सिर्फ एक “झूठी खुशखबरी” है—वास्तविक राहत उस पहले की दर्दनाक महंगाई को भूलने की धोखा है, न कि सच्ची सामर्थ्य में सुधार।
- बेरोज़गारी, खासकर शिक्षित युवाओं में, गंभीर सामाजिक संकट है—सरकारी आँकड़े इसे छिपाने का प्रयत्न करते हैं।
- MSMEs की बर्बादी केवल आंकड़ों की कहानी नहीं—उनकी टूटती आत्माएं हैं जो पारिवारिक गुज़ारे का स्तंभ थीं।
- यह पैकेज एक “झूठी खुशखबरी vs. असली दर्द” रिपोर्ट है—आवाज़ है उन लोगों की, जो आंकड़ों से बाहर खड़े हैं।